मिथिला राज्य
फुसिये के अछि हल्ला मिथ्ािला राज्य लेब हम।
मैथिल मिथिला मैथिलीक उद्धार करब हम।
भेल एखन धरि की, जकरा उपलब्धि कहब हम।
भाषण कविता पाठ मंच पर कते पढ़ब हम।
पँाच सात टा पत्र पत्रिका लीखत की की।
देत कते उपदेष कते के छापत की की।
आइ मैथिली मे छथि सगरो जतबा लेखक।
मात्र मैथिली मे एखनो ओतबे छथि पाठक।
तखन कोना समृद्ध हएत ई भाषा कहियो।
दस पाँच टा लोक करत की असगर कहियो।
नहि अछि लीखल कतौ मैथिली बाट-घाट पर।
नहि टीशन पर नहि बजार मे कतौ हाट पर।
सत्य कहै छी आइ जरूरति अछि विद्रोहक।
आर पार के युद्ध संग जौं भेटय सबहक।
नहि उठतै जहिया धरि ओ हुँकार गाम सँ।
नहि हटतै जा धरि किछु लोकक स्वार्थ नाम सँ।
जा धरि जन-जन शंखनाद नहि करत बाट पर।
जा धरि नेन्ना किलकारी नहि देत खाट पर।
ता धरि किछु नहि हएत ध्यान मे रहब कते दिन।
उठू लिअ संकल्प विजयी हम हएब एक दिन।
तखने भेटत जे अधिकारक बात करै छी।
मान चित्र मे भेटत मिथिला राज्य कहै छी।
सतीश चन्द्र झा
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
kavita
आम चुनाव
अछि गाम-गाम मे उतरि रहल
किछु लोक फेर सँ अनचिन्हार।
अछि पर्व चुनावक आवि गेल
क्षण-क्षण जड़तै सौंसे बिहार।
हमरे गामक किछु लोक बेद
आतंक मचायत अर्थ पाबि।
के कखन ककर दल मे जायत
के छीन लेत सभ वोट आबि।
नहि जानि कते दल बनत फेर
संघर्ष हएत टूटत समाज।
ओ रहत फेर अपने एक्कहि
छै ओकर मात्र विध्वंस काज।
जौं छै सभके उद्ेश्य एक
मानव सेवा कल्याण कार्य।
त’ बनल कियै छै दल सहस्त्र
क’ रहल कियै छै घृणित कार्य।
हम कोना करू प्रतिकार एकर
जड़ि गेल समाजक आत्मबोध।
सभटा जनितो सभ वोट देत
अन्यायक के करतै विरोध।
जातिक अछि भ गेल राजनीति
भाषा भाषा मे भेद भाव।
सभ अपन स्वार्थ मे अंध भेल
क’ रहल मनुक्खक मोल भाव।
बनते सरकार एतय ककरो
नहि बदलि सकत संपूर्ण चित्र।
विपदा बिहार के मिटा सकय
अछि कहाँ आइ ओ एकर मित्र।
सतीश चन्द्र झा
अछि गाम-गाम मे उतरि रहल
किछु लोक फेर सँ अनचिन्हार।
अछि पर्व चुनावक आवि गेल
क्षण-क्षण जड़तै सौंसे बिहार।
हमरे गामक किछु लोक बेद
आतंक मचायत अर्थ पाबि।
के कखन ककर दल मे जायत
के छीन लेत सभ वोट आबि।
नहि जानि कते दल बनत फेर
संघर्ष हएत टूटत समाज।
ओ रहत फेर अपने एक्कहि
छै ओकर मात्र विध्वंस काज।
जौं छै सभके उद्ेश्य एक
मानव सेवा कल्याण कार्य।
त’ बनल कियै छै दल सहस्त्र
क’ रहल कियै छै घृणित कार्य।
हम कोना करू प्रतिकार एकर
जड़ि गेल समाजक आत्मबोध।
सभटा जनितो सभ वोट देत
अन्यायक के करतै विरोध।
जातिक अछि भ गेल राजनीति
भाषा भाषा मे भेद भाव।
सभ अपन स्वार्थ मे अंध भेल
क’ रहल मनुक्खक मोल भाव।
बनते सरकार एतय ककरो
नहि बदलि सकत संपूर्ण चित्र।
विपदा बिहार के मिटा सकय
अछि कहाँ आइ ओ एकर मित्र।
सतीश चन्द्र झा
kavita
चुनाव
बजि उठल चुनावक रणभेरी
पसरल जय हो! के तुमुल नाद।
सभटा दल उतरल महल छोरि
क‘ उठल विजय कें शंखनाद।
हिंसा,हत्या,तृष्णाक आगि
पसरत सगरो जड़तै बिहार।
इतिहास बनत छल बल धन सँ।
नहि जानि ककर छै जीत हार।
साकांक्ष मेल जन जन सगरो
भय सँ जीवन की त्राण लेत !
ई धृ्र्रणा द्वेष के महापर्व
नहि जानि कते के प्राण लेत !
प्रतिपक्ष अगिलका सरकारक
गद्दी लए अछि बुनि रहल जाल।
सत्ता सुख सबके परम लक्ष्य
के देखि सकत रौदी अकाल !
भरि गाँव टोल सगरो घुमि घुमि
बोधत कहुना जीतत चुनाव !
सामथ्र्यवान के संग लेत
भूखल सँॅ एकरा की लगाव !
सम दोष एक दोसर के द‘
छीनत भविष्य के पाँच साल।
सुख दुख ओहिना जीवन ओहिना
जहिना छल बीतल पाँच साल !
सतीश चन्द्र झा
मधुबनी
बजि उठल चुनावक रणभेरी
पसरल जय हो! के तुमुल नाद।
सभटा दल उतरल महल छोरि
क‘ उठल विजय कें शंखनाद।
हिंसा,हत्या,तृष्णाक आगि
पसरत सगरो जड़तै बिहार।
इतिहास बनत छल बल धन सँ।
नहि जानि ककर छै जीत हार।
साकांक्ष मेल जन जन सगरो
भय सँ जीवन की त्राण लेत !
ई धृ्र्रणा द्वेष के महापर्व
नहि जानि कते के प्राण लेत !
प्रतिपक्ष अगिलका सरकारक
गद्दी लए अछि बुनि रहल जाल।
सत्ता सुख सबके परम लक्ष्य
के देखि सकत रौदी अकाल !
भरि गाँव टोल सगरो घुमि घुमि
बोधत कहुना जीतत चुनाव !
सामथ्र्यवान के संग लेत
भूखल सँॅ एकरा की लगाव !
सम दोष एक दोसर के द‘
छीनत भविष्य के पाँच साल।
सुख दुख ओहिना जीवन ओहिना
जहिना छल बीतल पाँच साल !
सतीश चन्द्र झा
मधुबनी
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