**मिथिलाक बात** बनल अष्टदल अड़िपन आँगन, माछ, मखान, पान अछि प्रचलित। चरण छूबि आशीश लैत छैथ, जतय बृद्ध केँ एखनहुँ धरि नित।

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

kavita

आम चुनाव

अछि गाम-गाम मे उतरि रहल
किछु लोक फेर सँ अनचिन्हार।
अछि पर्व चुनावक आवि गेल
क्षण-क्षण जड़तै सौंसे बिहार।

हमरे गामक किछु लोक बेद
आतंक मचायत अर्थ पाबि।
के कखन ककर दल मे जायत
के छीन लेत सभ वोट आबि।

नहि जानि कते दल बनत फेर
संघर्ष हएत टूटत समाज।
ओ रहत फेर अपने एक्कहि
छै ओकर मात्र विध्वंस काज।

जौं छै सभके उद्ेश्य एक
मानव सेवा कल्याण कार्य।
त’ बनल कियै छै दल सहस्त्र
क’ रहल कियै छै घृणित कार्य।

हम कोना करू प्रतिकार एकर
जड़ि गेल समाजक आत्मबोध।
सभटा जनितो सभ वोट देत
अन्यायक के करतै विरोध।

जातिक अछि भ गेल राजनीति
भाषा भाषा मे भेद भाव।
सभ अपन स्वार्थ मे अंध भेल
क’ रहल मनुक्खक मोल भाव।

बनते सरकार एतय ककरो
नहि बदलि सकत संपूर्ण चित्र।
विपदा बिहार के मिटा सकय
अछि कहाँ आइ ओ एकर मित्र।


सतीश चन्द्र झा

1 टिप्पणी:

Dinesh pareek ने कहा…

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/03/blog-post_12.html

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